पिछले सप्ताह एक वैवाहिक कार्यक्रम में हम अपने बड़े भाई साहब और अपने परिवार के साथ दो दिन के लिए जबलपुर गए थे। हम जिस दिन अमरकंटक से सुबह सुबह जबलपुर पहुचे उसी दिन रात को हमारे ममेरे भाई मेजर प्रयास पाण्डेय की शादी थी। दोपहर में व्रतबंध व पारंपरिक वैवाहिक कार्यक्रम सम्पन्न होने थे। सुबह से दोपहर तक अतिरिक्त जो समय था उसे हम ब्लॉगर साथियों के लिए रिजर्व रखना चाहते थे किन्तु गृह मंत्रालय को इस तरह से समय का दुरूपयोग पसंद नहीं था। बच्चे भी भेडाघाट दर्शन को समय का सदुपयोग मान रहे थे। विवाद बड़े भाई साहब के अदालत में जाए उसके पहले ही हमने एक टैक्सी मंगाई और कचनार क्लब रिसार्ट के द्वारे पर लगवा दी। अविभाजित मध्य प्रदेश के जमाने में आयकर व न्यायालय विभाग का मुख्यालय होने के कारण, हमारा जबलपुर आना जाना लगा रहता था और भेडाघाट के दर्शन लगभग हर प्रवास में हो जाता था किन्तु अंतराल के बाद धुंआधार को परिवार के साथ देखना अच्छा लगा। यह मलाल अवश्य रहा कि ब्लॉगर साथियों के साथ बैठ नहीं पाये फोटू-सोटू नहीं हो पाया, जबलपुर के स्थानीय समाचार पत्रों में छप नहीं पाये, दो चार दिन ब्लॉगर मिलन के पोस्ट टंग नहीं पाये। इन सबसे परे अपने परिवार के साथ धुंआधार का आनंद लेना अच्छा लगा, यद्धपि नर्मदा में पानी बढ़ जाने के कारण हम प्रपात के नजदीक बने प्लेटफार्म तक नहीं जा सके।
मेरा पुत्र अनिमेश धुंवाधार में चंचल नर्मदा के साथ
भेड़ाधाट रेस्टहाउस में शांत नर्मदा के साथ मैं
अनिमेश अपनी बहनो के साथ
भेडाघाट से वापस आने तक वैवाहिक कार्यक्रम आरंभ हो चुके थे और इस बीच कई बार हमें एवं हमारे बड़े भाई साहब को फोन आ चुके थे कि जल्दी कचनार क्लब रिसोर्ट पहुचो, वापस कमरे में आये और खिड़की खोली तो देखा विशालकाय शिव प्रतिमा नजर आ रही थी, जानकारी ली तो ज्ञात हुआ यह प्रतिमा बाजू में ही है, सो वैवाहिक कार्यक्रमों के बीच भगवान शिव के दर्शन भी कर आये.
कचनार क्लब रिसार्ट के बाजू में स्थित विशाल शिव प्रतिमा
रात में बारात-परधनी-बैंड-नाच चला जिसमें रिश्तेदारों के साथ ही वर के मेजर रैंक के मित्र व मातहत सेना के लैफ्टिनेंट, कैप्टन छोकरों को देखकर लग रहा था कि डांस का कार्यक्रम कुछ लम्बा चलेगा किन्तु सैन्य अनुशासन के अनुसार निर्धारित समय पर यह सम्पन्न हो गया। वर के पिता भी भारतीय वायु सेना के उच्चाधिकारी हैं वे नव रंगरूटों के इस अनुशासन से मन ही मन प्रसन्न होते रहे और हम भी ठुमका लगाने से बचे रहने के कारण खुश रहे। रिशेप्शन में भाला लिये रक्षक के वेश में स्टेज में तैनात दो जवान को देखकर हमें आश्चर्य हुआ वहां हमने लोगों से पूछा तो कुछ नें कहा कि शायद टैंट वालों नें ब्यवस्था की होगी, शो बाजी के लिए। पर भाले वाले चौंकीदारों का चेहरा जाना पहचाना लग रहा था, अरे हां ... ये दोनो वे ही थे जो कुछ देर पहले बैंड के साथ नाच रहे थे। तुक बैठा नहीं कि ये टैंट वालों के द्वारा भेजे गए लोग हैं, रिशेप्शन चलता रहा और मेरे मन में प्रश्न जीवंत रहा। काफी देर के बाद वे दोनो भालाधारी चले गए और वापस कपड़े बदल कर अन्य मित्रों के साथ एक लिफाफा लेकर मामा श्री, यानी वर के पिता के पास आये, और जब अपना परिचय दिये तब पता चला कि दोनो थल सेना में लैफ्टिनेंट थे. और यह सैनिक परंपरा थी.
चि. मेजर प्रयास पाण्डेय एवं सौ.का.पूनम
दूसरे दिन अल सुबह सड़क मार्ग से शारदा मॉं के दर्शन के लिए मैहर निकल गए, दर्शन कर वापस शाम को जबलपुर आये और अमरकंटक से अपने निवास की ओर रवाना हो गए। सीएसपी सूर्यकांत शर्मा जी से भी रास्ते में नहीं मिल पाये, ब्लॉगर्स मित्रों से नहीं मिल पाने का मुझे मलाल है, सूर्यकांत भाई व जबलपुर ब्लागर्स मित्रों से क्षमा, अगली यात्रा में आप सबसे अवश्य मिलेंगें।
मैहर दर्शन के लिए रोप कार से मोबाईल कैमरे की क्लिक
बड़ी ही सुन्दर यात्रा करायी। मेजर साहब को वैवाहिक जीवन की शुभकामनायें।
ReplyDeleteबड़ी सुन्दर सुन्दर फोटो लगाईं हैं आपने ! चि.अनिमेष की वज़ह से एक दो पोस्ट पढ़ पाने का स्मरण है ! यूं समझिए भेड़ाघाट पर ब्लागर अनिमेष को अपनी बहनों के साथ देख कर अच्छा लगा :)
ReplyDeleteऐसा लगता है कि भाले वाले, वर को ये समझाने के लिए लगाए गये थे कि आज के बाद "भाले की नोक" पर होने जैसा जीवन जियोगे :)
वर वधु को शुभकामनायें ! अच्छा संस्मरण !
badhiya vivran, var-badhu ko shubhkamnayein
ReplyDeleteaap ka pariwarik visit ke bare mai pad bahut hu sundar tarike se chitran kya hai aap ne gud
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