रामशरण शर्मा मुंगेली की रचनायें

काम करो नित काम करो मत – जांगर पेरत मूड़ नवाई
पथरा ले रस बाहिर तीरव – बंजर देवव सोन उगाई
नीक रहो अउ ठीक रहो सब – खीक रहो मत जागहु
भाई रे झन मूरख के कर संगति – काम बनाइहि सोंच सिराई

मत्त गयन्द (सवैया)
झूठन बोलत झूठन डोलत झूठ कमावत झूढहि लूटी
मूरख खोजत खोजत हारत – पावत हे नइ पावन बूटी
जीवन के रस जेमन जानत – तेमन पीवत सुंदर घूटी
पाछूल भूल के आघू ल बनाओ – पारँलगाँवैबूड़त खूंटी

चन्द्रकला (सवैया) - दुर्मिल 8 सगण (IIS) 25 वर्ण 4 चरण 2 यति
जब ले हरि जी ब्रज छोड़ गयै– सब ठौर लगै. अति सून सदाई
बिरवा लगते मुरझे मुरझे – नइ फूल परागन वो सुघराई
चहकॅ चिरियां नें दिखै हिरनी – न चरै गरुवा भई दूबर गाई
ब्रज की गलियां नर नारिन रे – बिन प्रान लगै. बिन कान्ह कन्हाई

भाव—पूजा अर्पण
मेरो मन मंदिर में आओ राम! विराजो हिये,
जाने कितै दिन बीते, दरश दिखाइये ।
अंसुअन से धोऊँ पद—कमल, मनोहर मृदु
केंवट सो रति-मति-गति पहुँचाइये। अर्ज—जलपात्र भरे, अध्र्य-आचमन करें
प्रेम-पंचामृत डुबकी लगाइये।
प्रीति की पीताम्बर, उपनीत प्राणायामत्रयी
चारू चित्त चंचल की चंदन लगाइये ।
श्रद्धा-सुमन-पावन, भावन चढ़ाऊँ तुम्हें
शीतल सनेह सिक्त तिलक लगाइये ।
रागानुराग-मणिमाला, मंजु मोहक है
दीनता की दक्षिणा, दीनानाथ पाइयें । ।
पश्चात्ताप अगिन में दिया धूप अहं का
आतमा का दीप जले, ज्योति जगमगाइये | |
कलि कलुषित भाव-भोगन लगाइये ध्रुव, प्रहलाद, हनुमंत से न शरणागति,
श्रीफल तांबुल समान तन भाइये । श्वांस प्रश्वांस करें स्तुती अमोल तब
लक्ष-लक्ष योनियों के फेर मेट जाइये । माया तव घुमाई बहु, जब से है जन्म लिया
जीव जो भटक्यों, प्रदक्षिणा सो पाइये | |
पाप-पुण्य-पुष्पांजली, समर्पित हरिचरणों में
शर्मा को भक्ति प्रसाद दे जाइये ।
| |जय | |


चुनाव चुनाव तो जीत गये जग्गू! चाहे अब जऊन करले ।
संढ़वा कस चर ले, के बघवा कस धर ले ।
आघू सोचेन न पाछू. सब दे तो डारेन तोला ।
चाहे चाऊर कस छर ले,के कोदो कस दर ले ।
ए दरी वो ल बदलेन, त ऐहा आइस ।
बिघवा ले बांचेन त, हूर ह पाइस ।
ए व्होट ह बईमान मन के, बेपार होगे हे।
चोर ले बचायेन, त डाक ह खाइस ।

अरे!सीन ह जइसने हो है, ओसनेच्च तो फिलिम होहो।
जइसन हो है गुमास्ता, आोसनेच्च तो इलिम होही ।
अच्छा तहीं बता, अमावस ल कोनो पून्नी बनाये सकहीं।
अरे ! अश्लीले म जौन जनमें हे, वो अश्लीलेच्च तो बोही । ।

पहिचान
ऐ शहर म मोला मिलिन, दू झन सज्ञान, एक के नाव सेऊक हे, दूसर के नाव मीतान ।
ऐखर चाबे ह जनावै नइ,त आोखर मारे ह पिरावै नइ ये ही हवे उन्खर, एकच्च ठन पहिचान !

नशT
एक दिन चैतू ह कहीस, सुन तो रे बैसाखू नशा बड़ सतावत हे, थोरिक दे तो रे तम्माखू!
बैसाखू कहीस तम्माखू म,केंसर अउ सेसर दूनों हे चल न एक अध्दी पी लेतेन,बईंठ के थाना आघू । ।

हास—बियंग
आजकल मंच के फुलझरी होगे,हास अऊ बियंग।
कतको झन के माँग होथे, बने परेम के परसंग ।

बईद जी
तोरपित ह तो, छरिहागे हे रे बाबू ऊपर ले बात ह धूकना कस धूकत है।
कफ के तो चाल ह, बनेच्च बिगड़े हे । तोर तन ल “तिरदोष' ह फूकत हे ।
कहूँ “मारकयोग” पड़े हो ही, तो “मिरतूजेय” जप करा ले ते । “
महाकालेच्च’ ह तोला बचाही, काल ह तो तूकत हे ।

रामशरण शर्मा काली माई वार्ड, मुंगेली जिला – मुंगेली (छ.ग)

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1 टिप्पणियाँ:

  1. बहुत बढ़िया कविता लिखे हे....जय जोहार

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