तपत कुरु भइ तपत कुरु
संजीव भैय्या के किरपा अउ परयास के फ़लस्वरुप एक ठीन किताब हाथ लग गे हे नाम हाबे "तपत कुरु भई तपत कुरु " अउ एखर लिखैय्या हाबे प्रसीद्ध प्रवचन कर्ता श्री दानेश्वर शर्मा जी एमा एक से एक मजेदार छ्त्तीसगढि गीत हाबे उही मे से एक ठिन ला ए मेर लिखत हाबो कबर कि जम्मो सुघ्घर चिज ला मिल बाँट के खाये के हमर छ्त्तीसगढि परंपरा हाबे ॥ त आवव पढव एक ठिन मजेदार गीत ......
तपत कुरु भइ तपत कुरु
बोल रे मिट्ठु तपत कुरु
बडे बिहनिया तपत कुरु
सरी मँझनिया तपत कुरु
फ़ुले-फ़ुले चना सिरागे
बाँचे हावय ढुरु-ढुरु ॥
चुरी बाजय खनन-खनन
झुमका बाजय झनन-झनन
गजब कमैलिन छोटे पटेलीन
भाजी टोरय सनन-सनन
केंवची-केंवची पाँव मा टोंडा
पहिरे हावय गरु-गरु ॥
बरदि रेंगीस खार मा
महानदी के पार म
चारा चरथय पानी पीथँय
घर लहुँटय मुँदिहार म
भइया बर भउजी करेला
राँधे हावय करु-करु ॥
पानी गिरथय झिपिर-झिपिर
परछी चुहथय टिपिर-टिपिर
गुरमटिया सँग बुढिया बाँको
खेत मा बोलय लिबिर-लिबिर
लइका मन सब पल्ला भागँय
डोकरी रेंगय हरु-हरु ॥
दीपक शर्मा
विप्लव
त आवव पढव एक ठिन मजेदार गीत ......
ReplyDeleteचुरी बाजय खनन-खनन
झुमका बाजय झनन-झनन
गजब कमैलिन छोटे पटेलीन
भाजी टोरय सनन-सनन
केंवची-केंवची पाँव मा टोंडा
पहिरे हावय गरु-गरु ॥
"ha ha ha "तो आओ पढें एक मजेदार गीत, और गीत की बस यही पंक्तियाँ समझ मे आयी हैं, पर कोशिश करना अच्छा लगा"
Regards
jai johaar ..abad mast likhe has bhai.
ReplyDeleteये गाना ल पढ़ॅ के "गोबर दे बछरू , गोबर दे चारो खुँट ल् लीपन दे के " सुरता आगे । दीपक भाइ ल बहुँत बहुँत साधुवाद
ReplyDeleteदीपक साधुवाद..
ReplyDeleteapki post padhakar bahutachcha laga .deepak ji ko rachana ke liye badhai.likhate rahiye.dhanyawad.
ReplyDelete