धर ले रे कुदारी गा किसान
आज डिपरा ला रखन के डबरा पाट देबो रे ।
ऊंच-नीच के भेद ला मिटाएच्च बर परही
चलौ चली बड़े बड़े ओदराबोन खरही
झुरमिल गरीबहा मन, संगे मां हो के मगन
करपा के भारा-भारा बाँट लेबो रे ।
चल गा पंड़ित, चल गा साहू, चल गा दिल्लीवार
चल गा दाऊ, चलौ ठाकुर, चल न गा कुम्हार
हरिजन मन घलो चलौ दाई - दीदी मन निकलौ
भेदभाव गड़िया के पाट देबो रे ।
जाँगर पेरइया हम हवन गा किसान
भोम्हरा अऊ भादों के हवन गा मितान
ये पइत पथराबन, हितवा ला अपन हमन
गाँव के सियानी बर छाँट लेबो रे ।
कवि मुकुन्द कौशल
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मोर नान्हे पन के सुरता ल देवा देहे ये गीत ह, मंझनिया कुन बासी खावत,अंगना मं बइठे रेडिया मं अइसने गीत मन ल सुनत सुनत बाढे हावय हमर पीढी ह, बने लागिस इंहा एला पढके,,
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