सारी

आजकल रोज सरी बिहनीया अ‍उ संझा दानेश्वर बबा के कविता ला पढत हव बने सुघ्घर लिखे हवय !!
आज पढव उंकर एक ठीन रोमांटिक गीत अपन सारी बर ॥

मोर सारी परम पियारी गा
र‍इपुरहिन अलग चिन्हारी गा
कातिक मा ज‍इसे सियारी गा
फ़ागुन मा ज‍इसे ओन्हारी गा
हाँसय त झर-झर फ़ुल झरय
रोवय त मोती लबारी गा ॥

एक सरीं देह अब्बड दुब्बर
झेलनाही सोंहारी जस पातर
मछरी जस घात बिछ्लहिन हे
हंसा साही उज्जर पाँखर
चर चर ल‍इका के महतारी
फ़ेर दिखथय जनम कुँवारी गा ॥

लेवना साँही चिक्कन दिखथे
कोयली साँही गुरतुर कहिथे
न जुड सहय न घाम सहय
एयर कन्डीसन म र‍इथे
सरदी म गोंदा फ़ुल झँकय
गरमी म भाजी अमारी गा ॥

आँखी म क्लोरोफ़ार्म हवय
विन्टर मा घलो वार्म हवय
नुरी पिक्चर के हिरो‍इन
साँही जौंहर के चार्म हवय
अपने घर सेंट इतर चुपरय
महकय चार दुवारी गा ॥


दीपक शर्मा
विप्लव

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1 टिप्पणियाँ:

  1. कलीच मोर सारी ल फोन मे इही गाना ल सुनात रेहेँव , लेकिन मोल केवल दुवे लाइन के सुरता आवत रिहिस हे । अब पुरा गाना ल सुनाहूँ

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