बोके बमुरी तैं चतुरा आमा कैसे खाबे





जइसन करम करबे फल वोइसनहे पाबे
बोके बमुरी तैं चतुरा आमा कैसे खाबे



लंद्फंदिहा लबरा झबरा के दिन थोरके होथे
पिरकी घलव चकावर करके मुड़ धर के रोथे
रेंगे रद्दा नरक के कैसे सरग हबराबे
बोके बमुरी तैं चतुरा आमा कैसे खाबे



दूसर बर खंचवा कोडवैया अपने गिर मरथे
चुरवा भर मा बुड्वैया ला कौन भला तिरथे
असल नक़ल सब परखत हे अउ कत्तेक भरमाबे
बोके बमुरी तैं चतुरा आमा कैसे खाबे



जनधन पद अउ मान बडाई पाके झन गरुवा
साधू कस परमारथ करके पोनी कस हरुआ
बर पीपर बन खड़े खजूर कस कब तक इतराबे
बोके बमुरी तैं चतुरा आमा कैसे खाबे



अंतस कलपाये ले ककरो पाप जबर परथे
हिन् दुबर दुखिया के सिरतो सांस अगिन झरथे
छानी ऊपर होरा झन भूंज जर बर खप जाबे
बोके बमुरी तैं चतुरा आमा कैसे खाबे



सब दिन सावन नई होवे नई होय रोज देवारी
सब दिन लांघन नई सोवे नई खावे रोज सोहारी
का सबर दिन रहिबे हरियर कभू तो अयिलाबे
बोके बमुरी तैं चतुरा आमा कैसे खाबे



सौंपत मा झूमे रहिथे बिपत मा दुरिहाथे
जियत कहिथे मोर मोर मरे मा तिरयाथे
ये दुनिया के रित एही काखर बर खिसियाबे
बोके बमुरी तैं चतुरा आमा कैसे खाबे



रचयिता
सुकवि बुधराम यादव
बिलासपुर
Share on Google Plus

About समीर यादव

2 टिप्पणियाँ:

  1. "jaise karam krega vaisa fal milega, bair boke aam kaise khayega" shee kha na.... bhut accha lga, thoda thoda smej aane lga hai ab"

    Regards

    ReplyDelete
  2. अच्छा लगीस गा. राउत नाचा में बोले जाए दोहा मन ल घलोक कभी इहाँ छापहू.

    ReplyDelete

.............

संगी-साथी