डा. परदेशी राम वर्मा छ्त्तीसगढ अउ छ्त्तीसगढी ला मया करइया मनखे मन बर नवा नाव नो हरे १८ जुलाई १९४७ के लिमतरा मे जन्मे ये सैनिक मनखे हर सेना मा रह के देश के माटी के सेवा कर अउ अब अपन कलम ले प्रदेश के माटी के सेवा करत हे ॥इन ला अगर छ्त्तीसगढ के प्रेमचंद कहे जाये त एहर अतिशयोक्ती नइ होवय। चुनाव अउ दाउ मन के अत्याचार ला तोलत आज पढव उंकर एक कहानी "जतन "
" जतन "
हाथ मा मुड भर के लऊठी धरे अउ कनिहा मा यहा बडा कटारी खोचें ,चरखना चद्दर ला लुंगी अस लपेटे पांच हाथ के मनखे सुरहुली गांव मा का आइस चिहुर उडगे । देखो देखो होगे लइका मन डर्रा गे लीम चौरा मा बइठ के खंजेरी मा भजन गवइया महराजी अउ चेला मन बक्खागें भुलागे बजई-गवई एक झन सियान हा आंखी म हथेरी के तोबरा बनाके नटेर के देखिस अऊ कहिस -" बडे दाऊ के संडाये रे ।रइपुर ले आवत हे।सरपंच चुनई भर रिही । बांचना हे तेमन बांच लव ।जेला जाना हे तेहा टिंगटिंगावय ।"
सहीच म संडा हा सोज रेंगत गीस अऊ बाडा के आगु मा जाके किहिस "दाऊ जी हम आ गये ।"
दाऊ के कुंदवा बडका कपाट के पिला पल्ला ल घुंचा के नौकर रतिराम निकरीस । पुछिस- काये ?
"दाऊ कहा हे ?"संडा पुछिस ।
"काबर?"
"हम आ गये है ।"
"काबर?"
"तुम्हारा सतौरी धरेबर ।साला ।काबर,काबर ।जाके बताओ दाऊ को कि रइपुर से आ गया है जतन अली ।"
रतिराम बांडा मा जाके बताइस ।अऊ बडका कपाट के दोनो माई पल्ला कटकटा के खुल गे। ्पिला पल्ला रतिराम अस छोटकुन मनखे बर बने हे अतन अली अस पचहत्ता अर बडका दरवाजा के दुनो पल्ला कोले बर परथे । जतन अली ल देख के रतिराम कहिस - "पिला दरवाजा हमर बर अऊ दुनो पल्ला तोर बर ।वाह रे विधाता।"
जतनअली हाँस के कहिस -"बाबु जादा रहोगे तो जादा पाओगे ।कमती रहोगे तो कमती पाओगे ।
रतिराम बात के मरम ला जान पातिस के दम्म ले बडे दाऊ के बइठका आगे ।
जतन अली बडे दाऊ संग दुआ सलाम करिस।चाह पानी बर कहिके दाउ पुछिस-"जतन गजब जतन करे बर परही।नान नान बछरु मन हुमेले चाहत हे।"जतन के हाथ लउठी मा चल दिस,कहिस-"दाऊ बताइये भर कि क्स सिर को पितल भरी लाठी भोंकने क शौक चर्राय्या है।बस्स।"
दाउ कहिस-"अब आ गे हस ता सिर गोड सब ला चिन्हा देबो।पांच घर के पठान हे इहा तुहर सगा उहु मन टिंग-टिंग करत हे।
जतन कहिस-"सगा फ़गा कुछु नही दाऊ।जिसका खाना उसका गाना।यह लाठी हिंदु सिक्ख,पठान इसाई नही पहचानती।इसीलिये तो मुझे लाठी आदमियो से ज्यादा अजीज है।"
"अजीज काय होथे जतन,अजीज तो हमर नौकर टुरा के नाम हे ।"जतन कहिस-अजीज याने बने लगता है।अच्छा लगता है।"
"हां ये बात हे।महुं ला नौकर टुरा बने लागथे।फ़ेर वोकर बाप रहमत ए गजब भडकइया।बुढा गे फ़ेर तिकडम नइ छोडीस।अब तंय सम्हालबे।पठानी चाल चलत हे साले हा।
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दुसर दिन टेक्टर मा बइठ के बडे दाउ फ़ारम भरे बर निकरीस।संग मा बीस पच्चीस अउ मनखे।टेक्टर मा सबले पहिली चढिस जतन अली ठेंग मार।"बडे दाउ के जय नारा लगीस अउ दल हा फ़ारम भरे बर आगु बढिस।वोती दाउ हा फ़ारम बरे गीस अउ येती गरिबहा मन करिस बइठका।समेलाल किहिस-देस आजाद हे दाउ मन राज करिन सदा दिन।अब सुराज आगे त सरपंच बनके दाउगिरी करबो कहिथे।रोके बर परहि।सुखराम पुछिस -"कइसे रोकबो।पुरा के धार ,अंधौर के मार अउ खुरचत गोल्लर के हुंकार ला डराये चाही।दाउ के आगु कोन खडे होही ,काखर दाइ हा दुध पियाये हे।"
बिना दाइ के दुध पिये ना दाउ नांदे हे ना तै बाढै हस निपोर के"।जब होही तब डरुवाथस।सुखराम के बात के जवाब दिस रमेसर हा।रमेसर गांव के नता मा सुखराम ला कका मानय।रमेसर के बात ल सुन के सुखराम किहिस-"रमेसर बेटा हमर दाइ ला छोड रे तोर दाइ हा कहुं बने ढंग के पियाये होही दुध ता तै खडा हो जा।रमेसर किहिस-"कका सब झन कहुं कहि दुहु त खडा होब मा काय हे गा ।सोचव।"
रमेसर गांव के मजदुर मन के नेता ये।निंदई के दिन मा ठेका मा निंदई करथे।गांव भर के मजदुर वोकर जस गाथे।गजब मजदुरी बाढ गे हे रमेसर के जोर मा।जब ले रमेसर हा शंकर गुहा नियोगी के लाल झंडा उठाये हे तब ले गांव मा अतियाचार करे के पहिली बडे दाऊ हा दु घाव सोचथे।शंकर गुहा नियोगी ला गोली दुश्मन मन टिपीन तेन दिन तौन दिन रमेसर के घर चुल्हा नइ बरिस।बडे दाउ बोकरा मरवइस।
रमेसर ल बाद मा सब बात ला सुखराम हा आके बताइस।के बडे दाऊ किहिस-"जइसे शंकर गुहा ल मरवा देन,तइसने अरताप के सबो वोकर चेला ल टिपका देबो।एक गिलास चढा के वोकर संगवारी बिजलाल हा पुछिस-"दाउ तै टिपवाये हस शंकर गुहा नियोगी ला?तैं कहा टिपवाये हस दाऊ ठठ्ठा झन कर।"दाउ हांस के किहिस-अतेक बिसकुटक ला जान लेते त काबर।देख शंकर गुहा नियोगी के झंडा कोन उठाथे।"गरिब मजदुर किसान मन दाउ?हमर बेटा भाइ मन उठाथे का ?नही दाऊ।हमन पसंद करथन का शंकर गुहा के दल ला?नहीं दाऊ।
त देख जतका बडे बैपारी,करखनहा,बडे दाऊ,पुंजीवाला नेता,पुंजी के रखबारी करे बर जऊन दल बने हे तिंकर नेता सबके एक जात।"त शंकर गुहा नियोगी ला हमर सांही पुंजी के रखवार कोनों भाई मरवावय्ते हम मारन बात एके ये ना जी।बिजलाल किहीस-तोला त विधायक होना चाहि दाऊ धन रे तोर डिमाग ।"बने कहे बिजलाल आज नहीं त काली होबो ।अब सरपंची विधायकी सब अतेक महंगा होवत जात हे के गरिब त अब सपना मा नइ सपनाये।पुंजी वाला मन विधायक बनही। जौन विधायक बनही तौन पुंजीवाला होही।जौन पुंजीवाला होही तौन विधायक बनही। वाह अच्छा कबी हस दाऊ"।देख बिजलाल धन जेकर करा रथे न वो हा कबी,कलाकार,सबके बाप बन जथे।त धन धरावे तीन नाम परसा परसु परसुराम।रमायन मे हे ना कविता"परसु सहित बड नाम तुम्हारा" तौन बात ये।वाह दाउ बात-बात मा रमायन के उदाहरण त तहि देथस, दाउ बड गयानी हस।दाउ किहिस -एक गिलास अउ चढा बिजलाल तहा देख मै अउ का देखाहुं तोला।
वो रात भर मन के पिअई खवई चलिस।उही दिन दाऊ कहि दिस के आगु साल के सरपंची हमर करा रहे चाही।अभी बाई हा सरपंच हे।महिला मन बर हमर गाव ल नव टिप्पा धर दिन।का करन पथरा तरी हाथ चपका गे।गौटनीन सरपंचीन बनिस तब ले राज हमर चलत हे।अब संवागे हम सरपंच बनबो ।सब तुहंला अभी ले देखना हे।अभी सरपंच पति हन काली सौंहत सरपंच बनबो।
दाऊ सुनथौ उंकरमन बर गांव ला रिजरब करही कथें।"काकर मन बर बे-दाऊ किहिस-माफ़ी देहु दाउ।सतनमी पारा के सुरित काहत रहिस,अब आगु बछर हमर मन बर सरपंची उठही कहिके।"देखो जी डौकी सियानी दिन सियान हम बनेन।पिछडा मन के बात हम बर्दास्त कर लेबो काबर के हम खुदे पिछडा हन।फ़ेर सतनामी मन ला नइ दन,आदिवासी ल नइ दन।कुर्मी,तेली,कोस्टा,गहिरा,ठेठ्वार सब एक होना हे।
राउक ला दाऊ के बात बने लागीस कहिस-सब एक होगे का दाऊ।रोटी बेटी एक चलही का?दाऊ रखमखा के उठ गे किहिस-पांव के पनही मुड मा माडही कभं बे।अरे बात ताय।नारा ये जी।कुर्मी तेली भाई-भाई नारा काहत लागथे।जीत गे हमर मतवारी वाला टोपीधारी दाऊ हा।दुरुग मा राज हे ।रामरतन शर्मा टोक दिस कहिस-"दाउ कुर्मी के कु अऊ तेली के ते मिला के एक झन हा कुते बना दिस अऊ नारा चल गे कुते जीत गये बाम्हन हार गया ।
कहा के बात ल कहा लेगथस महाराज कुर्मी जीतिस याने बाम्हन जीतिस,कुर्मी तेली याने धनी मानी ।बाम्हन माने बुद्धी।त धन अउ बुद्धी दुनु ला मिलके रहना परथे।बाकी सब डिरामा ये।जऊन कुते काहत हे तऊन दाउ घर जा के धडकत हे तस्मई अउ खीर ।समझे के बात ये।सुखराम उठ के किहीस-मैं आज जानेव दाऊ कि बाम्हन, कुर्मी,तेली जतका बडका हव तेमन ढिमरा,धोबी,राऊत,नाऊ,लोहार,सब ला सेवा करइया मानथव।चुनई के बेर तुमन हांस बोल लेथव अउ बाद आ कुते मुते हो के फ़ेर एक हो जथव।मैं आज जानेव दाऊ ।मैं अब जाथव राम राम ।दाऊ के नशा उतर गे बिजलाल बक्कखागे।
दाउ के सबो संगवारी गजब मनइन फ़ेर कहा रुकना हे सुखराम ला।निकर गे बाडा ले ।वो दिन हे अउ आज हे सुखराम फ़ेर बाडा मा नइ गिस।
बाडा ले निकर के सुखराम सिधा गिस रमेसर के घर।रमेसर घर चुल्हा नइ जरय रहे।शंकर गुहा नियोगी का मरिस रमेसर के सपना मर गे।"जेखर नाम ले के गरजन तेन शेर ला टिन दिस" रमेसर फ़ुसफ़ुसा के कहिस ।रमेसर ल धर के सुखराम गजब रोइस।मुंह डाहर ले भभका उंठे लागीस।रमेसर जान डारीस बडे दाउ घर ले आये हे चढे हे जम के।
सुखराम किहीस-बाबु रमेसर मोर भरोसा कर ददा,मे बडे दाऊ के घर पाल्टी खायें बर गे रहेव।सदा दिन शंकर गुहा नियोगी के बात ल तै बतवास आज गम पायेव।बडे-बडे रिही रमेसर छोटे-छोटे रिबो मोर बाप।काहत फ़ेर रोय लागीस सुखराम।
रमेसर किहीस-देख कका तैं पियेखाये हस ।जा सुत काली गोठीयाबो।अरे हमला पिंया खवा के बिचेत करही तभे त उंकर हाथ मा खेलबो।सराब के बडका कारखाना इंहा काबर खोले हे।चेत ल हेरे बर।जा कका काली आबे त कुछु सुनबो सुनाबो ।
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चुनई के बइठका मे फ़ेर सुखराम ल बोकरा भात के सुरता आगे ।वोहा जम्मो किस्सा ल बताइस।रमेसर हा उठ के किहीस-"शंकर ददा हा छ्त्तीसगढ ले बाहिर ले आईस अउ हमर मन के जिंदगी ला सुधारे बर मर गे।शहीद होगे।अऊ हमरे गांव के मनखे मन हमीं ल मरवाय बर फ़ेर संडा लाने हे रइपुर ले।त कोन हमर ये।शंकर ददा हा के गांव के दाउ हा।येला जान लौ संगी।भरम हे सब।पेट के एक जात,भुख के एक जात,लउठी के एक जात,बंदुक के एक जात।ओकर बात ल सुन के रज्जाक अली उठ गे।किहीस-बिलकुल सही ये।रइपुर ले आये हे तेहर हमर सगा ये।मगर आये हे हमी ल बोरे बर।दाऊ घर उतरे हे हमर सगा होतीस त हमर घर उतरतीस।हमला भरमाय बर चाल चले जात हे।भरम मा नइ आना हे।मिलजुल के दाउ अउ संडा के लौठी ला आगी मा झोंक देना हे। रमेसर किहीस-"आगी लगाय मा आगी लग जाथे।विचार के आगी लग जाये ते बहुत हे।हमर जनम-जनम के अंधविश्वास,डर, अज्ञान के कचरा जर जाये ये बहुत हे।बस आप सब तियार रहो,काली हमो मन जाबो सरपंच के फ़ारम भरे बर।
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संझौती जतन अली संग दाउ के दल हा फ़ारम भर के गांव मा आइस।नाऊ हा बताइस के गांव के सब मजदुर, किसान अउ जम्मों रमेसर ल मनइया एक होगे हें।दाउ जतन डाहर देखिस।जतन किहीस-दाउ मैं थोरुक अपन हम-मजहब जौन भाई हे तिकर सो बात करता हुँ।जतन पहुचींस पठान पारा।दुवा सलाम के बाद रज्जाक के घर मा बइठका होवीस।जतन किहीस-आप लोगो से गुजारिश है कि दाउ जी को आप साथ दे देवें।इसी मे हमारी भलाई है।काबर? रज्जाक पुछीस।काबर क्या दाउ जी से मेरी बात हो गयी है।इस पुरे इलाके मे मस्जिद नही है।आप लोग भी तो बस वैसे ही है।मैं मस्जिद के लिये जगह दिलवाउंगा और ईट सीमेंट अलग से।सजर अली कहिस-मस्जिद त तै रइपुर मा रोज जावत होबे बिरादर।हव नमाज के लिये जाता हुं।त इही सिखे हस भाई ल लालच देके गलत आदमी संग जोड देना हे।क्या मतलब?
मतलब ये के दाऊ ल आज तक हमर खियाल नइ आइस।आज मजहब अउ मस्जिद के बात उठ गे।हम इंहा मनखे-मनखे ल मान सगा भाई के समान यँह सिद्धांत जउन सब मजहब मा हे।उही ल हमर छ्त्तीसगढ के संत गुरु बाबा घासीदास कहे हे।उही बात ल मोहम्मद साहब,इसुमसी सबो झन कहे हे।सब मिलजुल के रहना चाही।त तै आयेंहस बैर कराये बर।बैर कैसा?अरे मस्जिद बनाबो त अम मिलजुल के बनाबो।दाऊ के पैसा म काबर बेचाबो।चुनई मा ठप्पा लगाना हे त मस्जिद बनवा दिही।
देवताधामी,धरम,महजब ल हमर छ्त्तीसगढ मा आरुग माने जाथे जी।चुनई बर एकर उपयोग दिल्ली मा राज करइया मन करथे।हमर नानचुन गाव मा झन दांदर के दंदौरा करव।झगरा झन लगावव।आगी धरिस के स जरे लगही।जियन खान दव ददा ।धरम मजहब हा मेल कराथे लडवावय नही।हम इही सीखे हन।अऊ जब दिन आही मस्जिद बन के रही।हम अपन घर मा नमाज पढ लेथन बिरादर।खुदा कहा नइ ये।सब जगह हे।
इंकर एकता अउ नेकी ल देख के जतन अली पैंतरा बदल दिस।किहीस-वाह तुम तो बडे नजुमी हो भाई।गालिब ने ठीक ही कहा है ।गालिब शराब पीने दे मस्जिद मे बैठ कर ,या वो जगह बता जहा पर खुदा नहीं।
वाह क्या समझ है।तो भाई,शराब मै आज पिलाकर रहुंगा।मुर्गा भी आ जायेगा।
रजब अली किहीस-मुर्गा त तय खुदे बन गे हस,अउ धन के शराब मा माते हे दाऊ हा ।भाई मोर ये गांव ककरो बिगाडे ले नई बिगडे।बिगडैया खुदे बिगड जाही।कुकरा जोनी छोड सच्चा मानुस बन।अगर तै सच्चा मुसलमान होबे त अभी दाऊ के संग छोड अपन रद्दा ल धर लेबे।प्यार मोह्बब्त मेल के रद्दा।अरे मजहब बदनाम मत कर।हमर मजहब त सबके भलाई के संदेश देथे।सब संग मिलके रहे बर किथे।सबला जवाब उहों देहे बर परही।दाऊ ल झन डर्रा ,सबले बडे मालिक ल डर्रा।जऊ हा सब ल मिल के रेहे बर कहे हे।लडे-लडवाय बर नइ कहे हे।
पता नही का होइस के जतन अली के दुनो आंखी डबडबा गे।भर्राये गला मा किहीस-"चचा आंख खुल गई।माफ़ कर दो।इस गांव का सुकुन नही छिनना है मुझे। अभी निकल जाउंगा।मुह काला कर लुंगा।रज्जाक अली रोकीस किहीस-चार पहर रात हमरो पारा म रहि जा भाई।आजतक लउठी के सहारा रेहे,आज परेम के सहारा रहि जा ।दाऊ के केहे मे आये अब हमर केहे मा जाबे।तय सगा अस गा।सगा अपन गोड मा आथे,बिदा करईया के गोड मा जाथे।रात ल काट ले बिहनीया चल देबे।दाऊ के माल-ठाल खुब उडाये,आज हमरो संग पसिया पी ले।
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होत बिहनीया दाऊ देखीस कि मुड भर लउठी धरे,चरखना चद्दर के लुंगी लपेटे,अखब्बर जवान जतन अली रइपुर डाहर लाहंग-लाहंग जात राहय।गांव भर मा सोर उड गे,जतन जतना गे फ़ुर्र के उडिया गे।हफ़रत जा के दाऊ ल नाऊ ह किहीस-"तोर सब जतन अबिरथा गे दाऊ,अब समे बदल गे"।
दीपक शर्मा
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