एक दिन जाना हवय इंहा ले...




एक दिन जाना हवय इंहा ले सबला ओसरी पारी
तन कैसे कब कहाँ ये ककरो हाथ नहीं संगवारी


अजरा, जतखत, परे डरे कस का बिरथा जिनगानी
खरतर, गुनवंता, धनवंता जात सुघर तोर परानी
पाछू के बिसराके जम्मो आघू चलो सुघारी
एक दिन जाना हवय इंहा ले सबला ओसरी पारी


हित मीत बन जीलव जग में बैर भाव सिरवा के
कौन भला जस पाथे दूसर के अंतस पिरवा के
नाम छोड़ ढही जाहय सगरी सिरजे महल अटारी
एक दिन जाना हवय इंहा ले सबला ओसरी पारी


सम्मुहे गुरतुर पाछू चुरकुर दगाबाज गोठियाथे
परहित अउ परकाज करे खातिर जौन मन ओतियाथे
मतलब साधे बर बोलय हितवा संग घलव लबारी
एक दिन जाना हवय इंहा ले सबला ओसरी पारी


चारी चुगरी कर नारद छल कर सकुनि कहवा ले
तोर अमोल तन ला गंगा चाहे डबरी नहवा ले
ये कंचन काया खोजे में फिर नई मिले उधारी
एक दिन जाना हवय इंहा ले सबला ओसरी पारी


पाप पुन्न सब धरम करम अउ रात दिन सुख दुःख के
उंच नीच गहिरा उथली संग नींद पियास अउ भूख के
सिरिफ निबहैया वोही करैया हे सबके चिनहारी
एक दिन जाना हवय इंहा ले सबला ओसरी पारी



तोर मोर का जम्मो झन के एक ठन वोही गोसईया
चिरई चुरगुन चीटी ले हाथी तक वोही पोसैया
मन के सगरी भरम छोड़ के ओखरे पाँव पोटारी
एक दिन जाना हवय इंहा ले सबला ओसरी पारी

रचयिता
सुकवि बुधराम यादव
बिलासपुर
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About समीर यादव

3 टिप्पणियाँ:

  1. सम्मुहे गुरतुर पाछु चुरपुर दगाबाज गोठियाथे " मजा आगे अडबड सुघ्घर हे

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  2. " last line, "mun ke sare bhrem chod" bus itna hee smej aaya, pdha to pura hai pr ye language nahee aate na..."

    Regards

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