यह दिखाता है कि भारत में अफसरों को न्याय व्यवस्था में कितना विश्वास है. आदमी को पद से अलग रखा है. एक आदिले ने पर्सनल कैपेसिटी में गड़बड़ की और दूसरा अफसर आदिले आफिसियल कैपेसिटी में जांच करेगा...
भारतीय न्याय व्यवस्था की विलम्बित चाल पर आक्षेप भले ही लगते रहे हों किंतु सैद्धांतिक रूप से उसे नागरिक विरोधी अथवा नैसर्गिक न्याय विरोधी , कभी नही माना गया ...न्याय के लिये विचारण करते समय पूंजी और प्रभुता के दीगर दांव पेंच भले ही साधारण नागरिकों को सम्यक न्याय नही मिल पाने के संकेत देते हों किंतु ऐसा कभी भी नही हुआ कि आरोपी ही न्यायकर्ता बन बैठा हो ! ये तो शताब्दी का सबसे बडा चुटकुला / न्याय प्रणाली का सबसे निर्लज्ज उपहास हो गया कि आरोपी चिकित्सा संचालक स्वयं के विरुद्ध अपने अधीनस्थ चिकित्सकों से जांच करवाये , क्या भारतीय न्याय व्यवस्था कठपुतली का खेल हो गई है ...इस अधिकारी के लिये ? क्या डाक्टर आदिले इतने मासूम है कि उन्हें नैसर्गिक न्याय विधि / प्रशासनिक कानूनों का इतना सा भी ज्ञान नहीं कि निर्दोष साबित होने तक , आरोपी के लिये सर्वाधिक सम्मानजनक स्थान कठघरा है , न्यायकर्ता की आसन्दी नहीं ! प्रथम द्रष्टया ऐसा लगता तो नही कि लम्बे प्रशासनिक अनुभव वाला कोई भी अधिकारी न्याय प्रणाली की इस साधारण सी शर्त से अपरिचित रह जाये ! तो फिर इसे उनकी शातिराना हरकत ही कहा जा सकेगा ! प्रश्न ये है कि आरोप किसी ऐरे गैरे नत्थू खैरे माने जाने वाले साधारण ग्रामीण के नही है और ना ही कोई कपोल कल्पना अथवा केवल आशंका मात्र बल्कि आरोपों को केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का दस्तावेजी समर्थन प्राप्त है जिसकी वज़ह से राज्य शासन ने उन्हे और उनकी अविधिक सहायता से लाभांवित दोनो छात्राओं को कारण बताओ नोटिस जारी किया है ...होना तो यह चाहिये था कि चिकित्सा संचालक स्वयं पद मुक्त होने की पेशकश करते हुए जांच का सामना करते या पद से चिपके रहने की कोई अपरिहार्य वज़ह होती भी तो कम से कम खुलकर कहते कि राज्य शासन के अन्य उच्चाधिकारी जांच कर लें ...किंतु ऐसा कुछ भी नही हुआ बल्कि वे इरादतन अपने ही मेकअप रूम मे घुसकर खुद के चेहरे पर सफैदा पोतने लग गये ! कौन जाने , उन्हें ये भ्रम क्यो हो गया है कि उनके विभाग से परे कोई और जांच एजेंसी अथवा कोई और अदालत नही होगी !
यह दिखाता है कि भारत में अफसरों को न्याय व्यवस्था में कितना विश्वास है. आदमी को पद से अलग रखा है. एक आदिले ने पर्सनल कैपेसिटी में गड़बड़ की और दूसरा अफसर आदिले आफिसियल कैपेसिटी में जांच करेगा...
ReplyDeleteभारतीय न्याय व्यवस्था की विलम्बित चाल पर आक्षेप भले ही लगते रहे हों किंतु सैद्धांतिक रूप से उसे नागरिक विरोधी अथवा नैसर्गिक न्याय विरोधी , कभी नही माना गया ...न्याय के लिये विचारण करते समय पूंजी और प्रभुता के दीगर दांव पेंच भले ही साधारण नागरिकों को सम्यक न्याय नही मिल पाने के संकेत देते हों किंतु ऐसा कभी भी नही हुआ कि आरोपी ही न्यायकर्ता बन बैठा हो ! ये तो शताब्दी का सबसे बडा चुटकुला / न्याय प्रणाली का सबसे निर्लज्ज उपहास हो गया कि आरोपी चिकित्सा संचालक स्वयं के विरुद्ध अपने अधीनस्थ चिकित्सकों से जांच करवाये , क्या भारतीय न्याय व्यवस्था कठपुतली का खेल हो गई है ...इस अधिकारी के लिये ? क्या डाक्टर आदिले इतने मासूम है कि उन्हें नैसर्गिक न्याय विधि / प्रशासनिक कानूनों का इतना सा भी ज्ञान नहीं कि निर्दोष साबित होने तक , आरोपी के लिये सर्वाधिक सम्मानजनक स्थान कठघरा है , न्यायकर्ता की आसन्दी नहीं ! प्रथम द्रष्टया ऐसा लगता तो नही कि लम्बे प्रशासनिक अनुभव वाला कोई भी अधिकारी न्याय प्रणाली की इस साधारण सी शर्त से अपरिचित रह जाये ! तो फिर इसे उनकी शातिराना हरकत ही कहा जा सकेगा !
ReplyDeleteप्रश्न ये है कि आरोप किसी ऐरे गैरे नत्थू खैरे माने जाने वाले साधारण ग्रामीण के नही है और ना ही कोई कपोल कल्पना अथवा केवल आशंका मात्र बल्कि आरोपों को केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का दस्तावेजी समर्थन प्राप्त है जिसकी वज़ह से राज्य शासन ने उन्हे और उनकी अविधिक सहायता से लाभांवित दोनो छात्राओं को कारण बताओ नोटिस जारी किया है ...होना तो यह चाहिये था कि चिकित्सा संचालक स्वयं पद मुक्त होने की पेशकश करते हुए जांच का सामना करते या पद से चिपके रहने की कोई अपरिहार्य वज़ह होती भी तो कम से कम खुलकर कहते कि राज्य शासन के अन्य उच्चाधिकारी जांच कर लें ...किंतु ऐसा कुछ भी नही हुआ बल्कि वे इरादतन अपने ही मेकअप रूम मे घुसकर खुद के चेहरे पर सफैदा पोतने लग गये ! कौन जाने , उन्हें ये भ्रम क्यो हो गया है कि उनके विभाग से परे कोई और जांच एजेंसी अथवा कोई और अदालत नही होगी !