चिनहा

चिनहा - संजीव तिवारी

कईसे करलाई जथे मोर अंतस हा
बारूद के समरथ ले उडाय
चारो मुडा छरियाय
बोकरा के टूसा कस दिखत
मईनखे के लाश ला देख के
माछी भिनकत लाश के कूटा मन
चारो मुडा सकलाय
मईनखे के दुरगति ला देखत
मनखे मन ला कहिथे
झिन आव झिन आव
आज नही त काल तुहूं ला
मईनखे बर मईनखे के दुश्मनी के खतिर
बनाये बारूद के समरथ ले उडाई जाना हे

हाथ मलत अउ सिर धुनत
माछी कस भनकत
पुलिस घलो कहिथे
झिन आव झिन आव
अपराधी के पनही के चिनहा मेटर जाही

फेर में हा खडे खडे सोंचथौं
जउन हा अनियाव के फौजी
पनही तरी पिसाई गे हे
तेखर चिनहा ला कोन मेटार देथे ?
मईनखे बर मईनखे के स्वारथ खातिर !

(१९९३ के बंबई बम कांड के दूसरे दिन दैनिक भास्कर के मुख्य पृष्ट पर प्रकाशित)
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1 टिप्पणियाँ:

  1. अपनी इस रचना के द्वारा कितनी मर्मस्पर्शी बात कह दी आपने ,वाह !तिवारी जी !बहुत सुंदर,

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