कुंवर काया कुम्हालागे....
मोर फूल असन कुंवर काया कुम्हलागे
निरमया निरमोही तोला दया नई लागे...
.............. तोला मया नई लागे.....
रेंगव तव अंचरा कांध ले सरकत जाथे
बैरी ये जवानी घरी-घरी गरुवाथे
तोर संग गोहरावत काजर घलव धोवागे...
निरमया निरमोही...........
पैरी के रुनझुन सबद निचट नई परखे
चुरी खनके के आरो घलव नई ओरखे
पुन्नी चंदा तोर छाँव जोहत कउआगे
निरमया निरमोही.............
सगरी जिनगी तोर बर अरपन कर डारेंव
ये मांग के सेंदुर तोर खातिर भर डारेंव
तोर मया पिरित मा लोक लाज बिसरागे
निरमया निरमोही......
तरिया नदिया मे संगवारी छेंकत हे
तोर नाव के गोटी मोर डहर फेंकत हे
अनमोल रतन ये गली-गली मा बेचागे
निरमया निरमोही तोला दया नई लागे ........
मोर फूल असन काया कुम्हलागे.......
............तोला मया नई लागे .
रचयिता
सुकवि बुधराम यादव वर्ष- 1976
मोर फूल असन कुंवर काया कुम्हलागे
निरमया निरमोही तोला दया नई लागे...
.............. तोला मया नई लागे.....
रेंगव तव अंचरा कांध ले सरकत जाथे
बैरी ये जवानी घरी-घरी गरुवाथे
तोर संग गोहरावत काजर घलव धोवागे...
निरमया निरमोही...........
पैरी के रुनझुन सबद निचट नई परखे
चुरी खनके के आरो घलव नई ओरखे
पुन्नी चंदा तोर छाँव जोहत कउआगे
निरमया निरमोही.............
सगरी जिनगी तोर बर अरपन कर डारेंव
ये मांग के सेंदुर तोर खातिर भर डारेंव
तोर मया पिरित मा लोक लाज बिसरागे
निरमया निरमोही......
तरिया नदिया मे संगवारी छेंकत हे
तोर नाव के गोटी मोर डहर फेंकत हे
अनमोल रतन ये गली-गली मा बेचागे
निरमया निरमोही तोला दया नई लागे ........
मोर फूल असन काया कुम्हलागे.......
............तोला मया नई लागे .
रचयिता
सुकवि बुधराम यादव वर्ष- 1976
अच्छा लिखा है। स्वागत है आपका।
ReplyDelete................Thanks........
संजीव भाई जौन बीड़ा मुड़ मा राखे अकेल्ला रेंगे के बाना बांधे हे, मे हा अपन थोर-बहुत भाखा के परेम, अपन माटी अउ सियनाहा मन के असीस पाये बर बाचे-खोचे समय मा अइसन रचना अरपन करत हाव. प्रस्तुत गीत chhattisgarhi मोटियारी के अंतस के मया, बिरहा, पीरा सबे ला परगट करथे येखर यही भाव मोला अनंद देथे . असीस देवव....समय मिलत रहि ता फेर नवा रचना संग मिलबो. जोहार !
ReplyDeleteवाह, ये त सच्ची म गुरतुर गोठ होगे गा, बने हे!
ReplyDeleteसमीर जी के पसंद ल माने ल पड़ही फेर।
अच्छा लगिस ओखरो बारे मे हल्का फुल्का जानके।
एला पढे के आद त कातै मोला मोहिनी डार दिये गोंदा फ़ुल ह सुरता आगे !! मजा आइस पढ के
ReplyDelete" मे ह रुपीया त् ते हस चवन्नी " असन छलछलहा गाना के जमाना मे बुधराम यादव के उलाहना - श्रृंगार के गाना/कविता ल पढके, बइसाख के पानी मे गरमी ह जुडा जथे तैसे बरोबर मोर् मन् ह जुडा गे । सजीव अव समीर भाइ दुनो झन् ल धन्यवाद ।
ReplyDeleteयुवराज गजपाल