सत्यजीत रे भले ही भारत के सबसे मशहूर फिल्मकारों में से एक हैं, लेकिन भारत सरकार ने सिक्किम पर उनकी बनाई हुई दस्तावेजी फिल्म 1971 में प्रतिबंधित कर दी थी। रविन्द्रनाथ ठाकुर के बाद सिक्किम पर बनाई गई यह फिल्म, उनकी दूसरी दस्तावेजी फिल्म थी जिस पर से विदेश मंत्रालय ने 40 साल से लगा प्रतिबंध उठाने का फैसला किया है। इसके बाद यह फिल्म सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित की जा सकेगी। रे के पुत्र संदीप रे, जो कि खुद भी एक फिल्मकार हैं, के मुताबिक यह फिल्म सिक्किम के आखिरी चोग्याल( राजा) पाल्देन थोंडुप नामग्याल और उनके अमरीकी रानी होप कुक ने बनवाई थी।
रे ने कहा- असल में चोग्याल की अमरीकी रानी चाहती थी कि रे सिक्किम पर एक दस्तावेजी फिल्म बनाएं। लेकिन तीन चरणों में फिल्माए जाने के बाद फिल्म जब पूरी हुई तो चोग्याल उसमें कुछ वास्तविकताओं के चित्रण से नाराज हो गए। इसमे शाही भव्यता के साथ सिक्किम के गरीबों का चित्रण था। मिसालन एक शॉट में रे ने एक शाही दावत के बाद महल के पिछवाड़े फेंक दी गई जूठन के लिए गरीबों की छीना झपटी दिखाई थी। संदीप कहते हैं - जब शाही दम्पत्ति ने पहली बार कलकत्ता में यह फिल्म देखी तो वह कुछ शॉट्स से नाखुश थे, और उन्होंने उन्हें काटने का आदेश दिया। रे अंतिम रूप से बनी फिल्म से नाखुश थे, भारत में इस फिल्म का अब तक का यही एक मात्र प्रदर्शन था। 1975 में सिक्किम के भारत में विलय के बाद भी यह एक संवेदनशील इलाका माना जाता रहा, और केन्द्र ने राजशाही द्वारा बनवाई गई फिल्म पर प्रतिबन्ध लगाना तय किया, जिसके कारण इसका प्रदर्शन कभी नहीं हुआ।
मूल रूप से पर्यटन स्थल के रूप में इस राज्य के प्रचार के लिये बनाई गई इस फिल्म को लोग अब देख सकेंगे, इस खयाल से उत्साहित संदीप ने टाईम्स ऑफ इंडिया से कहा- शुरुआत में रे हिचक रहे थे, और उन्होंने कुक से कहा कि मैं दस्तावेजी फिल्में बनाता नहीं हूं, मैंने केवल टैगोर पर एक ऐसी फिल्म बनाई है। लेकिन कुक ने जोर देते हुए कहा कि उन्होंने टैगोर पर बनाई गई फिल्म देखी है और वह चाहती हैं कि वह सिक्किम पर भी फिल्म बनाएं। स्कूल छात्र के रूप में संदीप को अपनी छुट्टियों के दौरान फिल्म की शूटिंग देखने जाने की याद है। संदीप कहते हैं कि इस फिल्म के कुछ अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन हुए हैं। लेकिन यह अभी भी रे की एक अनजानी फिल्म है क्योंकि बहुत कम लोग जानते हैं कि रे ने सिक्किम पर कोई फिल्म बनाई है। सन्दीप कहते हैं- मैंने दो साल पहले इसे फ्रांस में रे के समूचे कार्य के सिंहावलोकन में देखा था। वह कहते हैं कि इसके मूल नेगेटिव अमरीका में होने चाहिए, क्योंकि सिक्किम के भारत में विलय के वक्त वह चोग्याल के पास थे। लेकिन दस्तावेजी फिल्म के दो प्रिंट अमरीका और ब्रिटिश फिल्म संस्थान के पास हैं। ब्रिटिश फिल्म संस्थान के अनुरोध पर सुविख्यात फिल्म संरक्षक जोसेफ लिंडवाल और एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर्स ने इसे संरक्षित किया है। अंतरराष्ट्रीय फिल्म जगत और दुनिया भर में फैले भारतीय इस फिल्म पर से प्रतिबन्ध हटाने की मांग करते रहे हैं। सरकार ने यह अनुरोध मान लिया है और अब यह फिल्म रे के 90 वें जन्म दिन पर 2 मई 2011 को पूरे देश में प्रदर्शित होगी।
साभार : अंग्रेजी - 15 सिंतबर (टाईम्स ऑफ इंडिया), हिन्दी : दैनिक छत्तीसगढ़.
कोया पाड : बस्तर बैंड
गांव के महमहई फरा
चलिये संदीप जी की सुनी तो सरकार ने...
ReplyDeleteबहुत अच्छी खबर है।
ReplyDelete" केन्द्र ने राजशाही द्वारा बनवाई गई फिल्म पर प्रतिबन्ध लगाना तय किया, जिसके कारण इसका प्रदर्शन कभी नहीं हुआ "
ReplyDeleteप्रतिबन्ध के पीछे क्या केवल संवेदनशील क्षेत्र होना ही एकमात्र तर्क था ?
देर आयद दुरुस्त आयद
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