आदमी

आज खुशामदखोर अहं के गरल उगलते हैं
करते हैं बाहर से सौदा भीतर बिकते हैं
रिश्ते नाते हुए खोखले मुंह देखा व्यवहार
उल्लू सीधा करने वालों की है आज कतार
पल-पल डींग हॉंकते अपना यश दुहराते हैं
चमचे स्वारथ के रस पीने शीश झुकाते हैं
किन्तु असंभव है खोटे सिक्कों का चल पाना
सबसे कठिन आदमी को है, आज समझ पाना.

विद्या भूषण मिश्र
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1 टिप्पणियाँ:

  1. आप को तथा आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

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