धान के देश वाले युवा हृदय सम्राट जी.के. अवधिया जी नें अपने एक पोस्ट में हिन्दी ब्लोगिंग के अपने तीन साल के अनुभव को हम सबसे शेयर किया है. जिसके अनुसार 'हिन्दी ब्लोगिंग का तो उद्देश्य है महान ब्लोगर बनकर अन्य ब्लोगरों से सर्वाधिक टिप्पणी प्राप्त करना। अतः सफल ब्लोगर वे ही होते हैं जिन्हें सर्वाधिक टिप्पणी प्राप्त होती है।'
उन्होंनें लिखा है कि 'महान ब्लोगर वे होते हैं जो हिन्दी ब्लोगिंग के उद्देश्य एवं लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहते हैं और यह तो आप जानते ही हैं कि हिन्दी ब्लोगिंग का उद्देश्य न तो रुपया कमाना है, न अपने मातृभाषा की सेवा करना और नेट में उसे बढ़ावा देना है और ना ही पाठकों को उसके पसन्द की जानकारी ही देना है '
गुरूदेव के दोनों बातों पर मैं यहां चर्चा कर लेना चाहता हूं. हमारा पहला उद्देश्य एडसेंस से पैसा कमाना था सालों से कमाने का भ्रम बनाये गूगल बाबा नाराज हो गए और अब कमाई का भूत गायब हो गया है. दूसरा कि मातृभाषा छत्तीसगढ़ी की सेवा करने का भ्रम पालते हुए नेट में कुछ डाटा अपलोड कर दें पर पाठकों को इससे कोई लेना देना नहीं, दूसरी प्रादेशिक व क्षेत्रीय भाषा के ब्लागों में पाठक नजर आते हैं पर हमारी भाषा ब्लॉगजगत में सबसे गरीब है. (सुना है छत्तीसगढ़ के ब्लॉगरर्स हिन्दी ब्लॉगजगत में धूम मचा रहे हैं.)
गुरूदेव के दोनों बातों पर मैं यहां चर्चा कर लेना चाहता हूं. हमारा पहला उद्देश्य एडसेंस से पैसा कमाना था सालों से कमाने का भ्रम बनाये गूगल बाबा नाराज हो गए और अब कमाई का भूत गायब हो गया है. दूसरा कि मातृभाषा छत्तीसगढ़ी की सेवा करने का भ्रम पालते हुए नेट में कुछ डाटा अपलोड कर दें पर पाठकों को इससे कोई लेना देना नहीं, दूसरी प्रादेशिक व क्षेत्रीय भाषा के ब्लागों में पाठक नजर आते हैं पर हमारी भाषा ब्लॉगजगत में सबसे गरीब है. (
हम अपने हिन्दी ब्लॉग आरंभ से संतुष्ट हैं, यद्धपि वहां भी टिप्पणी पाने की दृष्टि से हम क्षुद्र ब्लोगर हैं. हम क्षुद्र ही सही. क्षुद्र होने के बहुत से फायदे हैं.
जी के अवधिया जी से में सहमत नही हूँ, ब्लोगिंग के ये तो बहुत तुच्छ सीमा हुई. ब्लॉग्गिंग और इन्टरनेट का कोई दायरा नहीं होता.
ReplyDeleteऔर हर तरह के लोग है इधर ...कुछ लोग सिर्फ "वाह" "वाह" टिप्पणियों के लिए लिखते है ..ये पानी के बुलबुले है और पता नहीं कैसे ये ऐसा करके आत्मसंतुष्टि पाते है.
मेरे हिसाब से ब्लॉग्गिंग को मतलब है अपनी बात रखने का तरीका, डायरी लिखने के सामान है ये, बस इधर आपका परिवार बड़ा रहता है. श्रोता और पाठकों की संख्यां आपके कंटेंट के ऊपर निर्भर करती है
अभिव्यक्ति के इस उन्मुक्त आकाश को दायरों में बाँधना संभव ही नहीं है.....ओर ऎसा कोई प्रयास भी उचित नहीं कहा जा सकता.....साधो इस संसार में भान्ती भान्ती के लोग...जहाँ भान्ती भान्ती के लोग हों तो वहाँ विचार विविधता होना तो तय ही है....
ReplyDeleteठीक ही बात है साहब। वही ब्लॉगर सफल है जिसके पास सबसे ज्याद टिप्पणियां हैं। जिस पर टिप्पणी नहीं वह असफल। कैसे लिखा है क्या लिखा है इससे कोई वास्ता नहीं रह गया है। सही है।
ReplyDeletehttp://udbhavna.blogspot.com/
मस्ती में सार्थक लिखते चलें. शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteलिखना एक मानवीय गुणधर्म है जानवर थोड़े ही लिखते हैं ! वैसे ही टिप्पणियाँ करना भी मानवीय है जो नहीं करते आमानवीय हैं !
ReplyDeleteहा हा हा हा। अवधिया जी के मजा आथे सन्जीव! बने सुल्गावत रथे। क्षूद्रे च म बने हन। बने लिखे हस। हमला लागथे अवधिया जी हा इन डायरेक्ट ही सही हमन ला आशीर्वाद देत रथे।
ReplyDeletenice
ReplyDeleteराम त्यागी से सहमत!
ReplyDeleteक्षुद्र ब्लॉगर श्रेणी में हम भी आपके पीछे खड़े हैं :-)
ReplyDeleteआपके ब्लाग पर जलजला टिप्पणी करता है न.. तो फिर आप छोटे कैसे हो गए। अभी किसी ब्लागर के द्वारा लिखी गई आरती पढ़ रहा था। उस ब्लागर ने जलजला से आग्रह करते हुए लिखा था कि हे बाबा जलजला कभी मेरे ब्लाग पर भी टिप्पणी कर दिया करो क्योंकि तुम जहां-जहां जाते हो वह ब्लाग हिट हो जाता है।
ReplyDeleteअरे संजीव भाई मजाक कर रहा हूं..
तुम्हारे ब्लाग में जितनी उपय़ोगी सामाग्री होती है उतनी कहीं और नहीं होती। भाई मैं तो समय-समय पर आता रहता हूं और फिर जिसने मेरा ब्लाग बनाया है वह कोई छोटा-मोटा आदमी थोड़े ही हो सकता है। मैं अपना निवेदन हमेशा दिल व विचारो से बड़े लोगों से ही करता हूं। अभी कुछ दिनों पहले ही पाबला जी किया है।
"हमारा पहला उद्देश्य एडसेंस से पैसा कमाना था"
ReplyDeleteइसी उद्देश्य से तो हम भी आये थे भैया। और आकर फँस गये यहाँ के मायाजाल में। ये हिन्दी ब्लोगिंग तो अब "साँप के मुँह में छुछूंदर" बन गई है हमारे लिये। यही सोचकर खुद को तसल्ली देते रहते हैं कि कभी तो पाठकों की संख्या बढ़ेगी और विज्ञापनों से कुछ कमाई होने लगेगी। वैसे डीजीएम प्रो साइट के विज्ञापनों से आठ दस महीनों में डेढ़ दो हजार बन जाते हैं जो कि भले ही "ऊँट के मुँह में जीरा" हो पर थोड़ी सी खुशी दे जाती है।
???????????????????????????????????????????????????????????????????
ReplyDeleteकुछ छुद्र ग्रहिकाओं नें धरती का जीवन बदल दिया था...नामवर ग्रह टकराते तो धरती केवल नष्ट ही होती !
ReplyDeleteआप बदलाव के प्रतिनिधि है तो बुरा क्या है ?
( सांकेतिक रूप से यही बात ब्लाग्स पर भी लागू होती है )
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ReplyDeleteअवधिया जी से में सहमत नही
ReplyDeleteओह संजीव भाई आपने तो हमें धर्मसंक्ट में फ़ंसा दिया ,
ReplyDeleteएक ब्लोग पर टिप्पणियां आती हैं जैसे ही तनिक महान ब्लोग्गर होने का भ्रम पालते हैं अगली पोस्ट पर अपने सिवाय और किसी और को नहीं पाते , फ़टाक से कैटेगरी चेंज होके बाय डिफ़ाल्ट क्षुद्र वाली कैटेगरी में पहुंच जाते हैं ।
ReplyDeleteअवधिया जी से असहमत होते हुये भी,
मैं अपनी टिप्पणी देकर आपसे आपके क्षुद्र होने का हक़ छीनना नहीं चाहता ।
फिलहाल क्षमा ही करें ।
17 टिप्पणियां अब इसे मिलाकर 18 टिप्पणियां पाने के बाद भी आप अपने को क्षुद्र कहते हैं तो हम क्या हुए??????????
ReplyDeleteइसे आज के शब्दों में कहें तो आप दलित (आपके शब्दों में) और हम पद-दलित .....................
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड