कृष्ण ने कहा,
'मेरा अभी एक काम शेष है। ये यदुवंशी बल-विक्रम,वीरता-शूरता और धन-संपत्ति से उन्मत्त होकर सारी पृथ्वी ग्रस लेने पर तुली हैं। यदि मैं घमंडी और उच्छृंखल यदुवंशियों का यह विशाल वंश नष्ट किए बिना चला जाऊंगा तो ये सब मर्यादाओं का उल्लंघन कर सब लोकों का संहार कर डालेंगे।'
अंत में कृष्ण के परामर्श से सब प्रभासक्षेत्र में गए। वहां मदिरा में मस्त हो एक-दूसरे से लड़ते 'यादवी' संघर्ष में वे नष्ट हो गए।
श्री वीरेन्द्र कुमार सिंह चौधरी जी के ब्लॉग से साभार
यादवी संघर्ष में नष्ट होना ही है
ReplyDeleteप्रभासक्षेत्र में नही तो कुरुक्षेत्र में
नाईस
जोहार ले
जय हो!! प्रवचन चालू रखे जायें. जोहार ले :)
ReplyDeleteसंजीव जी। पोस्ट अच्छी है, लेकिन कहना चाहूंगा कि लाल, पीला और न जाने कौन कौन से रंग भर दिए हैं वो आंखों में चुभ रहे हैं। पढऩे में काफी दिक्कत हुई। हो सके तो उसे रंग एेसा कर दें जो आंखों को इस भीषण गर्मी में शीतलता प्रदान करे।
ReplyDeletehttp://udbhavna.blogspot.com/
मनमर्जी।
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ReplyDeleteदेखना ये है कि इन्हें प्रभास क्षेत्र ( आभास क्षेत्र ) कितने दिन में .... : )
ReplyDeleteइस कुरुक्षेत्र में यादवों के अलावा और भी तो हैं?
ReplyDeleteकृ्ष्ण अब उस अन्तिम कार्य निष्पत्ति के आखिरी पडाव पर पहुँच गए लगते हैं :-)
ReplyDeletebhai sahab, shivaji sawant ka Mrutyunjay na sahi lekin is mudde par Yugandhar padhna hi chahiye ki kaise sara yaduvansh samaapt hua aur kaun bacha......
ReplyDeletebaki agar lekhak ki baat karu to unke tino upanyas Mrutyunjay, chhaava aur Yugandhar tino hi apne samay ke dastavej kahlayenge, ultimate....
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ReplyDeletenice
ReplyDelete@ दादाजी
ReplyDeleteक्षमा करें श्रीमान आपकी टिप्पणी मेरे टिप्पणीकर्ता पर व्यक्तिगत आक्षेप वाली थी इसलिए हटा दिया, अनुरोध है कि आप उन्हें उनके ब्लॉग में जाकर टिप्पणी दीजिए.
prstuti he nye andaaz ke liyen bdhaai. akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteयदुवंश का नाश तो दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण हुआ था। यहाँ किसने शाप दिया है?
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