ढाल

बढता नाविक
क्षितिज के पार
समुद्र की लहरें विशाल
कलम जिसकी ताकत
मानस की प्रतिबद्धता
है उसकी ढाल.

संजीव तिवारी
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1 टिप्पणियाँ:

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संगी-साथी