भारत के औद्योगिक इतिहास में पहली बार केन्‍द्र सरकार ने की ऐसी साहसी कार्रवाई

कल के दैनिक छत्‍तीसगढ़ के मुख्‍य पृष्‍ट पर धान के कटोरा एवं वनो की धरती कहे जाने वाले छत्‍तीसगढ़ के भूमि पर वृहद उद्योगों का अंबार खड़ी करने वाले एवं समाचार पत्रों में भारी भरकम विज्ञापन देने वाले जिन्‍दल समूह से संबंधित एक समाचार नें बरबस मेरा ध्‍यान आकर्षित किया। छत्‍तीसगढ़ समाचार पत्र सांध्‍य दैनिक है इस कारण इसके मुख्‍य समाचार दूसरे दिन के अखबारों में भी पढ़ने को मिलते हैं इस कारण भरोसा था कि आज के अखबारों में इस संबंध में प्रकाशित समाचारों को पढ़कर अपनी व्‍यक्तिगत सोंच इस समाचार के संबंध में जाहिर कर पाउंगा किन्‍तु आज इस समाचार के छत्‍तीसगढ़ समाचार पत्र में प्रकाशन के दूसरे दिन किसी भी समाचार पत्र  में यह समाचार प्रकाशित नहीं हुआ। तो हमने सोंचा इस समाचार को ब्‍लॉग पर प्रस्‍तुत किया जाए। छत्‍तीसगढ़ में प्रकाशित संपूर्ण समाचार यहां देखें,  समाचार का टैक्‍स्‍ट इस प्रकार है -  
  
जिंदल बिजलीघर केन्‍द्र सरकार ने रोका, बिना इजाजत, बिना जमीन निर्माण पर राज्‍य को कार्रवाई के लिए कहा

रायपुर, 19 जून (छत्‍तीसगढ़)। प्रदेश के सबसे बड़े निजी उद्योगपति और कांग्रेस के सांसद नवीन जिंदल की कंपनी को केन्‍द्र सरकार की ओर से तगड़ा झटका लगा जब कल भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने रायगढ़ के तमनार में जिंदल के बिजलीघर की योजना को खारिज कर दिया और छत्‍तीसगढ़ सरकार से कहा है कि वह पर्यावरण के नियम तोडऩे के लिए जिंदल के खिलाफ केस दर्ज किया जाए। रायगढ़ के जन चेतना नाम के सामाजिक संगठन की शिकायत पर केन्‍द्र सरकार ने एक टीम बनाकर तमनार में जांच करवाई थी और उसकी रिपोर्ट के आधार पर यह कार्रवाई की गई है। जन चेतना संगठन के रमेश अग्रवाल लगातार रायगढ़ में उद्योगों की मनमानी के खिलाफ लगे हुए हैं और उन्‍होंने 'छत्‍तीसगढ़' को भारत सरकार के कल के आदेशों की प्रतियां भेजते हुए इस बात पर खुशी जाहिर की कि भारत के औद्योगिक इतिहास में पहली बार केन्‍द्र सरकार ने ऐसी साहसी कार्रवाई की है और इससे तमनार के आदिवासियों को इंसाफ मिलसकेगा।

उल्लेखनीय है कि बिजलीघर बनाने के मामले में जिंदल ने बिना पर्यावरण मंजूरी के और बिना पर्याप्‍त जमीन के गैरकानूनी निर्माण शुरू कर दिया था। इस बारे में 'छत्‍तीसगढ़' ने पिछले महीनों में लगातार रिपोर्ट छापी थीं और इन रिपोर्टों को लेकर जिंदल ने 'छत्‍तीसगढ़' के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी शुरू की थी। कल के इन आदेशों से इस ताकतवर उद्योग समूह की मनमानी स्थापित हो गई है क्‍योंकि नवीन जिंदल उसी कांग्रेस पार्टी के ताकतवर सांसद हैं जो केन्‍द्र सरकार में मुखिया है और खासकर केन्‍द्रीय पर्यावरण मंत्री कांग्रेस पार्टी के ही हैं।

24 सौ मेगावाट की बिजली योजना जिंदल की 18 जून 10 को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने जिंदल पॉवर लिमि. के डायरेक्‍टर को सूचित किया है कि उनके द्वारा 24 सौ मेगावाट का प्रस्तावित कोयला आधारित ताप बिजली घर का प्रस्ताव मंत्रालय ने अस्वीकार कर दिया है। केंद्र सरकार ने एक दूसरे पत्र में प्रदेश के आवास एवं पर्यावरण सचिव को लिखा है कि जिंदल द्वारा पर्यावरण स्वीकृति प्राप्‍त किए बिना पॉवर प्‍लांट का काम शुरू करना वन संरक्षण अधिनियम के नियमों के खिलाफ है। अधिनियम की धारा 19 के तहत जिंदल के खिलाफ केस दर्ज किया जाए।

इस पूरे मामले में जिंदल स्टील एवं पॉवर लिमिटेड के उपाध्‍यक्ष प्रदीप टंडन ने 'छत्‍तीसगढ़' से चर्चा में कहा कि उन्‍हें अभी तक इसतरह की कोई कार्रवाई संबंन्‍धी पत्र के बारे में कोई जानकारी नहीं है। 31 मार्च 2009 को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने जिंदल के इस बिजली घर के लिए सैद्धांतिक स्वीकृति देते हुए, जिंदल के आवेदन पर विचार करते हुए टीओआर निर्धारित किए थे। जिनके मुताबिक जिंदल को अपनी पर्यावरण अध्‍ययन रिपोर्ट तैयार कर प्रथम जनसुनवाई करवानी थी।

इसी बीच बिना स्वीकृति प्राप्‍त हुए जिंदल द्वारा बिजली घर के निर्माण का कार्य शुरू कर दिया गया। 'छत्‍तीसगढ़' नें इस आशय कीखबर प्रमुखता से प्रकाशित की थी। पर्यावरण के लिए काम करने वाली संस्था जनचेतना ने भी जिंदल घराने के गैरकानूनी कार्यों की शिकायत केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश से की थी। शिकायत पर कार्रवाई कर केंद्रीय मंत्रालय ने एक दो सदस्यीय जांच चल रायगढ़ भेजा, जिन्‍होंने 22 मई 2010 को तमनार परियोजना स्थल का निरीक्षण किया और पाया कि जिंदल ने प्रस्तावित 24 सौ मेगावॉट के पॉवर प्‍लांट के लिए 62 हेक्‍टेयर पर काम शुरू भी कर दिया था। इसके पहले जिंदल को एक हजार मेगावाट के प्‍लांट के लिए मंत्रालय ने स्वीकृति 8 जून 2006को दी थी। मंत्रालय ने लिखा है कि 31 मार्च 2009 को जारी किए गए पत्र में 24 सौ मेगावाट के लिए 1041 हेक्‍टेयर भूमि की आवश्यकता बताई गई थी, जिसमें से 491 हेक्‍टेयर राखड़ बांध के लिए, 2 हेक्‍टेयर जलाशय और 100 हेक्‍टेयर कॉलोनी के लिए बताई गई थी। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने नोट किया कि 62 हेक्‍टेयर भूमि में इतना बड़ा प्‍लांट लगाया जाना संभव नहीं है। इस बात को भी गंभीरता से लिया कि जिंदल द्वारा 24 सौ मेगावाट के पॉवर प्‍लांट का स्थान बदली किए जाने की जानकारी भी मंत्रालय को नहीं दी गई। इसमें पर्यावरण मंत्रालय ने आपत्ति दर्ज की है।

मंत्रालय ने पाया कि 24 सौ मेगावॉट प्‍लांट की योजना प्री-मेच्‍योर है। ऐसा कोई स्थान नहीं है, जहां इतना बड़ा प्‍लांट लगाया जा सके। इन तथ्‍यों के प्रकाश में मंत्रालय ने 31 मार्च 2009 को 24 सौ मेगावॉट के लिए जारी किए गए दिशा निर्देशों को वापस लेते हुए जिंदल को पुन: नया आवेदन जमा करने के लिए कहा है। इस तरीके से प्रस्ताव को रद्द किए जाने से 8 मई 2010 को हुई जन सुनवाई स्वमेव निरस्त हो जाती है। उसका कोई औचित्‍य नहीं रह जाता।


राज्‍य ने निर्माण पहले ही रोक दिया था- बैजेन्‍द्र
छत्‍तीसगढ़ शासन के पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव बैजेन्‍द्र कुमार ने इस बारे में कहा कि 18 जून के भारत सरकार के ये पत्र राज्‍य शासन को अब तक नहीं मिले हैं इसलिए वे इस बारे में अभी कुछ नहीं कह सकते, लेकिन राज्‍य शासन ने पहले ही जिंदल के इस बिजलीघर का निर्माण कार्य रोक दिया था क्‍योंकि वह पर्यावरण की मंजूरी के बिना बनाया जा रहा था। उन्‍होंने कहा कि इसके लिए हुई जनसुनवाई में बड़ी संख्या में आपत्तियां आई थीं। उन्‍हें दो बैग में भरकर केन्‍द्र सरकार को भेज दिया गया है। अभी वे आपत्तियां वहां पहुंची नहीं होंगी। उन्‍होंने कहा कि केन्‍द्र सरकार ने जिंदल के निर्माणाधीन बिजलीघर की जांच करने के लिए एक टीम भेजी थी जिसके साथ राज्‍य शासन के अधिकारी भी गए थे। उसकी रिपोर्ट केन्‍द्र से अभी मिली नहीं है। बैजेन्‍द्र कुमार ने कहा कि पर्यावरण नियम तोडऩे वाले बहुत से और उद्योगों, खदानों के खिलाफ भी राज्‍य शासन ने कार्रवाई की है।
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5 टिप्पणियाँ:

  1. मुनाफे के लिए अनाप-शनाप औद्योगिक विकास धरती को मनुष्यों के लायक न छोड़ेगा। औद्योगिक विकास मनुष्य की आवश्यकता के अनुसार और प्रकृति के साथ न्यूनतम छेड़छाड़ करते हुए ही होना चाहिए।

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  2. उल्लिखित निज उद्योग समूह के प्रमुख , कांग्रेस के सांसद है अतः यू.पी.ए. सरकार के कांग्रेसी नियंत्रण वाले मंत्रालय द्वारा इस योजना को बाधित किया जाना अत्यधिक महत्वपूर्ण घटना है ! व्यक्तिगत तौर पर मैं केन्द्रीय सरकार का प्रशंसक नहीं , पर इस उद्धरण को देखने के बाद ये भी नहीं कह सकता कि वहां पर सब काला ही काला है ! इस लिहाज़ से केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को , मुझ जैसे निंदक के सामने यू.पी.ए. सरकार की लाज रखने के लिये बधाई का पात्र माना जाना चाहिये ! हां कुछ प्रश्न जरुर मन में हैं , जिनके उत्तर खोजे जाना शेष हैं ... जब यह स्पष्ट था कि २४०० मेगावाट की परियोजना के लिये कम से कम १०४१ हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता है तो केवल ६२ हेक्टेयर भूमि पर परियोजना का काम कैसे शुरू कर दिया गया ? जबकि मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि पर्याप्त भूमि की अनुपलब्धता के चलते , इतने बड़े प्लांट की योजना प्री -मेच्योर है ! क्या प्रस्तावित परियोजना को कागजों पर कुछ और तथा जमीन पर कुछ और होना था ? वर्ना १०४१ हेक्टेयर और ६२ हेक्टेयर जमीन का अंतर सामान्य अंतर नहीं है ! क्या उद्योग समूह ने इस अंतर को पाटने की कोई रणनीति भी बनाई थी ? इस प्रश्न का उत्तर यदि ना में हो तो नि:संदेह पार्श्व में कुछ तो गड़बड़ है जिसके उत्तर ढूढे जाने चाहिये !
    इसके अलावा मंत्रालय से योजना की स्वीकृति मिले बिना ही काम चालू कर दिये जाने के भी अलग निहितार्थ हो सकते हैं ! क्या उद्योग समूह को यह विश्वास था कि वह २४०० मेगावाट की परियोजना को केवल ६२ हेक्टेयर में परिचालित करने का अस्वाभाविक अनुमोदन प्राप्त कर लेगा ? क्या उसे प्रशासकीय स्वीकृतियों के बिना प्रोजेक्ट प्रारंभ करने का अधिकार था ? यदि नहीं तो यह सब उसने किसके बलबूते पर किया और क्यों ? फिर पावर प्लांट का स्थान भी बदल दिया गया ? अगर मंत्रालय कहता है कि उसे इसकी भी सूचना नहीं दी गयी तो इसे भी प्रशासन तंत्र की अनदेखी या उपहास ही माना जाना चाहिये ! जन सुनवाई में प्राप्त दो बैग भर आपत्तियों को डस्ट बिन में तो नहीं डाला जा सकता , आखिर को ये बैग जनमत / जनपक्ष से भरे हुए थे !

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  3. अली जी का हम समर्थन करते हैं.

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  4. बड़ा गोरखधनदा हो गया है ये आजकल
    कौन चोर कौन सिपाही ?

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  5. जयराम रमेश ने बहुत सारी योजनाओं पर रोक लगाई है विशेषकर छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में . एमपी की एक योजना क वहाँ के मुख्यमंत्री ने , प्रधानमंत्री से स्वीकृत करा ली !
    जब तक कोई स्वीकृति नियम से न बंधकर, व्यक्ति से बंधी होगी ऐसा ही होता है .

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