हम अच्छा पढने और अच्छा लिखने में ध्‍यान नहीं लगाते : जनाब हिन्‍दी ब्‍लॉगजगत नें हमें कहा

कल हमारे पोस्‍ट टिप्पणी पाने की दृष्टि से हम क्षुद्र ब्लोगर हैं में एक हिन्‍दी ब्‍लॉगजगत नाम के श्रीमान जी, जो अपना नाम हिन्‍दी में नहीं अंग्रेजी में लिखते हैं, पधारे और अपने टिप्‍पणी से हमें कृतकृत कर दिया. जनाब नें हमें बतलाया कि हम अच्छा पढने और अच्छा लिखने में ध्‍यान नहीं लगाते. सिर्फ वे ही हैं जो अपने ब्‍लॉग में सौ टाप हिन्‍दी ब्‍लॉगरों के लिंक लगाकर रोज सुबह अगरबत्‍ती धूप देकर हनुमान चालीसा जैसे पढ़ते हैं. बाकी सब तो अच्छा पढने और अच्छा लिखने में ध्‍यान ही नहीं लगाते बल्कि फालतू बातों की बातों की ओर अपना ध्‍यान लगाते हैं. उन्‍होंनें आगे यह भी कहा है कि हम अपने समय और रचनात्मकता का बेहतर सदुपयोग भी नहीं करते.

आपको छोड़कर क्‍या चौदह हजार हिन्‍दी ब्‍लॉगर्स यही सब कर रहे हैं .............. ? 

महफ़ूज भाई हमारे साथ हैं -




 
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13 टिप्पणियाँ:

  1. नाम पता करिए किसने कहा? आजकल मैं बहुत ज्यादा बॉडी बिल्डिंग कर रहा हूँ....... मछलियाँ फड़क रही हैं....

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  2. जिस किसी ने भी यह बात आप तक पहुंचाई है वह गदहे का बच्चा है.

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  3. किसके दिल में क्या है अल्लाह जानता है.. डोले सही लगे जी.. :)

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  4. आप अपना लेखन करते रहें.

    यह महफूज भाई कब पहुँच गये रायपुर??

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  5. ...सबसे पहले ... महफ़ूज मियां क्या बात है!!!

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  6. ...सिर्फ वे ही हैं जो अपने ब्‍लॉग में सौ टाप हिन्‍दी ब्‍लॉगरों के लिंक लगाकर रोज सुबह अगरबत्‍ती धूप देकर हनुमान चालीसा जैसे पढ़ते हैं...

    ...बहुत ही प्रसंशनीय कार्य है निश्चिततौर पर बधाई के पात्र हैं...हा हा हा ...हा हा हा !!!

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  7. कौन कौन क्यो करते हैं
    लिंक दे रहा हूँ खुद ही देख लें
    http://www.blogger.com/profile/06938620761555382194

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  8. जिसकी जो मर्ज़ी हो वही करे .....मर्ज़ी पर किसी की और की मर्ज़ी कहाँ चलती है ...अच्छा लिखा है आपने

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  9. ये महमूज मियाँ "रूस्तम-ए-ब्लाजगत" बनने की तैयारी में लगे हैं क्या :-)

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  10. हिन्‍दी ब्‍लॉगजगत नाम के श्रीमान

    किसने कहा आपसे?

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  11. मेहफूज भाई की जरूरत नहीं ...उस गदहे के बच्चे(जलजला फरजी के अनुसार) हम डेढ पसली छत्तीसगढिया ही काफी है संजीव भाई..

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  12. अपने को डोले शोले देखकर ही डर लगने लगता है, ऐसे डराया मत कीजिये।

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  13. अरे महफूज भाई,

    लगता है आपने भारत का इतिहास रूसी इतिहासकारों के नजरिए से कुछ ज्यादा ही सिरियसली पढ़ लिया है इसलिए मछलीयां फडक रही हैं शायद :)

    और ये सफेद रंग का जो टी शर्ट पहने हो कुछ कुछ मेरे टी शर्ट से मिलता जुलता है , सुबह सूखने को डाला था.....अब मिल नहीं रहा

    चाहिए था तो मांग लेते यार ऐसे ही सूखते कपडे उतार कर चलते बने, ऐसा थोडी होता है यार :)


    संजीव जी,

    सुनो सबकी, करो अपने मन की..बस यही मानना है अपना तो।

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