पिछले वर्ष मेरे घर के आम के पेड में कुल जमा दो आम फले थे तब यह आम एक पोस्ट इस आम में क्या खास है भाई .... ? बनकर खास हो गया था और इसका जिक्र प्रिंट मीडिया में भी हुआ था. और हम अतिप्रशन्न हो गए थे कि चलो अब घर के दरवाजे-खिड़की-चौखट के संबंध में भी पोस्ट बना कर पब्लिश किया जा सकता है ऐसे पोस्टों को न केवल पढा जाता है वरण इसकी चर्चा प्रिंट मीडिया में भी होती है.
मेरी छोटी बगिया मुस्काती है
और जब कोयल हाईब्रिड
बौर आये आम के पेड पर
बैठकर कूकती है,
गौरैया के झुंड फुदकते हैं
तब मेरा श्रम
सार्थक नजर आता है
तेजी से कांक्रीटमय होती
शहरी धरती में
कहीं कोई पेड भी है
जिसे मैंनें लगाया है.
संजीव तिवारी
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